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जनवरी, 2018 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

कानून है तब भी

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     लड़की की शादी और उसमे दहेज़ एक बहुत बड़ी समस्या है जिसके निबटारे के लिए देश में बहुत सख्त कानून बना है .जो इस प्रकार है - दहेज निषेध अधिनियम, 1 9 61 में धारा 3 दहेज देने या लेने के लिए दंड-1  (1) ] यदि कोई व्यक्ति, इस अधिनियम के प्रारंभ होने के बाद, दहेज देने या लेने पर ले जाता है या लेता है, तो उसे दंडित किया जाएगा [एक अवधि के कारावास के साथ जो 3 से कम नहीं होगा [पांच वर्ष, और ठीक से जो पन्द्रह हजार रूपए से कम या इस तरह दहेज के मूल्य की राशि, जो भी अधिक हो, नहीं होगा: -1 [(1)] यदि कोई व्यक्ति, इस अधिनियम के प्रारंभ होने के बाद, देता है या लेता है दहेज देने या लेने से, वह दंडनीय होगा [एक पद के लिए कारावास के साथ जो 3 वर्ष से कम नहीं होगा, और जुर्माने के साथ पंद्रह हजार रुपये से कम नहीं होगा या इस तरह के दहेज के मूल्य की राशि, जो भी अधिक है] \: "बशर्ते न्यायालय, फैसले में दर्ज किए जाने के लिए पर्याप्त और विशेष कारणों के लिए, 4 [पांच साल] से कम अवधि के लिए कारावास की सजा को लागू कर सकता है।] [5] ([2] उप-धारा (1) के संबंध में या इसके संबंध में लागू होंगे- 1 [(2) उप-धारा (1)

हिन्दू विधवा पुनर्विवाह बाद भी उत्ताधिकारी

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     एक सामान्य सोच है कि यदि हिन्दू विधवा ने पुनर्विवाह कर लिया है तो वह अपने पूर्व पति की संपत्ति को उत्तराधिकार में प्राप्त नहीं कर सकती है किन्तु हिन्दू उत्तराधिकार अधिनियम कहता है कि यदि विधवा ने पुनर्विवाह कर लिया है तब भी वह उत्तराधिकार में प्राप्त संपत्ति से निर्निहित नहीं हो सकती है .इन द   मैटर ऑफ़ गुड्स ऑफ़ लेट घनश्याम दास सोनी ,2007  वी.एन.एस. 113  [इलाहाबाद] में कहा गया है कि विधवा हिन्दू उत्तराधिकार अधिनियम की प्रथम अनुसूची में प्रथम श्रेणी के वारिस के रूप में अपने पति की परिसम्पत्तियों और प्रत्ययों के प्रशासन-पत्र की हक़दार है   और विधवा के इसी अधिकार को पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय ने उपरोक्त मामले में निर्णीत किया है . मोटर वेहिकल एक्ट 1988  की धारा 166  कहती है - केंद्र सरकार अधिनियम मोटर वाहन अधिनियम, 1 9 88 में धारा 166 166. मुआवजे के लिए आवेदन.- (1) धारा 165 की उपधारा (1) में निर्दिष्ट प्रकृति के दुर्घटना से उत्पन्न होने वाली मुआवजे के लिए आवेदन किया जा सकता है- (ए) उस व्यक्ति द्वारा जिसने चोट कायम रखी है; या (बी) संपत्ति के मालिक द्वारा; या (सी) जहां मौ

वसीयत और मरणोपरांत वसीयत

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   वसीयत एक ऐसा अभिलेख जिसके माध्यम से व्यक्ति अपनी मृत्यु के बाद अपनी संपत्ति की व्यवस्था करता है .भारतीय उत्तराधिकार अधिनियम की धारा 3  में वसीयत अर्थात इच्छापत्र की परिभाषा इस प्रकार है -  ''वसीयत का अर्थ वसीयतकर्ता का अपनी संपत्ति के सम्बन्ध में अपने अभिप्राय का कानूनी प्रख्यापन है जिसे वह अपनी मृत्यु के पश्चात् लागू किये जाने की इच्छा रखता है .''      वसीयत वह अभिलेख है जिसे आदमी अपने जीवन में कई बार कर सकता है किन्तु वह लागू तभी होती है जब उसे करने वाला आदमी मर जाता है .एक आदमी अपनी संपत्ति की कई बार वसीयत कर सकता है किन्तु जो वसीयत उसके जीवन में सबसे बाद की होती है वही महत्वपूर्ण होती है.       वसीयत का पंजीकरण ज़रूरी नहीं है किन्तु वसीयत की प्रमाणिकता को बढ़ाने के लिए इसका रजिस्ट्रेशन करा लिया जाता है और रजिस्ट्रेशन अधिनियम 1908  की धारा 27  के अनुसार - '' विल एतस्मिन पश्चात् उपबंधित रीति से किसी भी समय रजिस्ट्रीकरण के लिए उपस्थापित या निक्षिप्त की जा सकेगी .''       इच्छापत्र सादे कागज पर लिखा जाता है और इसके लिए स्टाम्प नहीं लगता है क्योंक