संपत्ति का विभाजन हमेशा से ही लोगों के लिए सरदर्द रहा है और कलह,खून-खराबे का भी इसीलिए घर के बड़े-बुजुर्ग हमेशा से इसी कोशिश में रहे हैं कि यह दुखदायी कार्य हमारे सामने ही हो जाये .इस सबमेँ करार का बहुत महत्व रहा है .करार पहले लोग मौखिक भी कर लेते थे और कुछ समझदार लोग वकीलों से सलाह लेकर लिखित भी करते थे लेकिन धीरे धीरे जैसे धोखाधड़ी बढ़ती चली गयी वैसे ही करार का लिखित होना और निश्चित कीमत के स्टाम्प पर होना ज़रूरी सा हो गया .अब लगभग सभी करार सौ रूपये के स्टाम्प पर होते हैं क्योंकि सौ रूपये के स्टाम्प पर होने से करार का रजिस्टर्ड होना आसान हो जाता है .लेकिन इस सबके साथ एक बात यह भी है कि अब भी बहुत से करार ऐसे किये जा सकते हैं जो लिख भी लिए जाएँ और उनका रजिस्टर्ड होना ज़रूरी भी न हो .वैसे भी रजिस्ट्रेशन एक्ट ,१९०८ की धारा १७[२] कहती है कि ''१७[२][i ] किसी भी समझौता अभिलेख का रजिस्ट्रेशन ज़रूरी नहीं है '' किन्तु ऐसा नहीं है कि इस धारा को मानकर आप सभी जगह समझौते को रजिस्टर्ड कराने से बचें .वास्तव में मैं यहाँ पारिवारिक समझौते से विभाजन की बात कर रही हूँ जिसके लिए कहा गया
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