देर से ही सही प्रशासन जागा :बधाई हो बार एसोसिएशन कैराना .

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आज मैं आपको इलाहाबाद हाईकोर्ट के एक ऐसे निर्णय के बारे में बताने जा रही हूँ जो हमारे देश में कपटपूर्ण  व्  न्यायालय  का समय  बर्बाद करने वाले वादों की बढ़ोतरी को रोकने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है किन्तु इसके साथ ही यह दिखता है प्रशासनिक विफलता को जिसके कारन २४-५-२०१२ को दिया गया यह निर्णय २६-११-२०१२ तक भी कार्यान्वित नहीं हो पाया है .अब क्या नहीं हो पाया है यह आप इस निर्णय व् मामले के बारे में पढ़कर जान सकते हैं .
 निर्णय -इलाहाबाद उच्च न्यायालय
तिथि -२४-५-२०१२
जज-माननीय सिबगत उल्लाह जे.
दिवित्य अपील न० -२१४ -२०१२
गुलज़ार अहमद पुत्र नियाज़ अहमद निवास पुराना बाज़ार ,जामा मस्जिद ,कैराना जिला मुज़फ्फरनगर [अब शामली ]-----वादी /अपीलार्थी  

                                               बनाम
श्रीमती अख्तरी विधवा नियाज़ अहमद निवासी पुराना बाज़ार ,जामा मस्जिद कैराना जिला मुज़फ्फरनगर [अब शामली ]---------प्रतिवादी /प्रत्यर्थी 

प्रस्तुत मामले में वादी ने अपनी माता प्रतिवादी के विरुद्ध एक वाद दायर किया कि वादी द्वारा माता /प्रतिवादी के पक्ष में २०-७-२००२ को निष्पादित किया गया विक्रय दस्तावेज क्योंकि लेनदारों को कपटवंचित   करने के आशय से निष्पादित किया गया था इस आधार पर शून्य है .प्रतिवादी के उपस्थित न होने पर वाद एकपक्षीय रूप से ख़ारिज कर दिया गया .
   १५-७-२००२ को सिविल जज सीनियर डिविजन कैराना द्वारा ख़ारिज कर दिया गया न केवल वाद ख़ारिज किया गया बल्कि यह कारण वादी व् उसके वकील के विरुद्ध सात दिन के अन्दर यह कारण दिखाने हेतु नोटिस भी जारी किया गया कि क्यों न उनके विरुद्ध प्रथम सूचना रिपोर्ट दर्ज की जाये ?
इस आज्ञप्ति  के विरुद्ध वादी ने ए.डी.जे .कोर्ट न० ९ मुज़फ्फरनगर में अपील दायर की .वादी ने इसमें कहा कि विक्रय दस्तावेज के निष्पादन के पश्चात् वह अपने ऋण अदा करा चुका था .इसके अनुसार वादी द्वारा माता के पक्ष में किया गया अंतरण वाद पात्र में वर्णित आधार पर शून्य नहीं है बल्कि केवल शून्यकरणीय    है  और वह भी केवल लेनदारों के विकल्प पर न कि स्वयं वादी के विकल्प पर .
प्रिवी कौंसिल ने ज़फरुल हसन बनाम फरीदुद्दीन ए.आई .आर .१९४६ पी.सी.१७७ में धारित किया कि पक्षों में किया गया ऐसा अंतरण उनमे से किसी के द्वारा त्यागा नहीं जा सकता है .
     ए . आई .आर. १९५४ नागपुर १२९ [डी बी ]में धारित किया गया कि धारा ५३ संपत्ति अंतरण अधिनियम में ऐसी घोषणा का प्रभाव पक्षों में ऐसे विक्रय दस्तावेज को संचालित करने का होता है न कि निरस्त  करने या ऐसे एक ओर रखने का .

ए.आई.आर.१९३९ मद्रास ८९४ ,ए,आई.आर.१९६१ पंजाब ४२३ और ए.आई.आर.१९५४ मद्रास १७३ में धारित किया गया कि जबकि ऐसा अंतरण नहीं किया गया है अपने दावे लागू करने के अधिकार केवल लेनदारों का होता है .यह भी धारित किया गया कि धारा ५३ में घोषणा का परिणाम केवल तभी निरस्त किया जा सकता है जबकि लेनदारों और उनके दावों व् दावों  के अधीन रहते हुए संतुष्ट करने से बचने के लिए किया गया हो ,पक्षों में ऐसा अंतरण विधिमान्य व् प्रवर्तनीय है .
    ए.आई.आर.१९६३ मैसूर २५७ में धारित किया गया कि धारा ५३ के अंतर्गत आने से बचने में किया गया अंतरण बचने योग्य संव्यवहार नहीं है किन्तु इसका लेनदारों को देरी कराने या पराजित करने पर कोई प्रभाव नहीं है.
मोहम्मद तकी खान बनाम जंग सिंह ए.आई.आर.१९३५ इलाहाबाद ५२९ ऍफ़.बी में धारित किया गया कि जहाँ सारभूत रूप में कपट द्वारा प्रभावित किये जाने का आशय है वहां न्यायालय किसी पक्ष को अपने दस्तावेज से बचने के क्रम में अपने कपट का कथन करने की आज्ञा न देगा .

    और उपरोक्त प्राधिकार के प्रकाश में न्यायालय ने यह वाद निरस्त कर दिया .न्यायाधीश की राय में इसमें वादी व् उसके वकील के विरुद्ध नोटिस या प्रथम सूचना रिपोर्ट का कोई अवसर नहीं था .
            इसके अनुसार गुण पर दिवित्य अपील ख़ारिज की गयी .यद्यपि निचले न्यायालय को वादी व् उसके वकील के विरुद्ध नोटिस व् प्रथम सूचना रिपोर्ट के आदेश को निरस्त किया गया .फिर भी वादी पर कपटपूर्ण ,वाद और न्यायालय का समय बर्बाद करने के कारण २५,०००/-रूपए का जुर्माना लगाया गया .जो कि वह तीन महीने में बार एसोसिएशन कैराना जिला मुज़फ्फरनगर अब शामली को अदा करेगा और यदि वह ऐसा करने में असफल रहता है तो कलेक्टर भू राजस्व की बकाया की तरह इसकी वसूली करेगा .बार एसोसिएशन कैराना इसका उपयोग किताबें खरीदने में करेगा .  

[और यह विचारणीय है कि नायालय का यह निर्णय अभी तक कार्यान्वित नहीं हुआ है .न तो वादी ने जमा किया है और न ही कलेक्टर ने इसे वसूल  किया है .चूंकि मुजफ्फरनगर की जगह अब कैराना का जिला शामली है तो ये दायित्व शामली के कलेक्टर का बनता है किन्तु बार एसोसिशन कैराना द्वारा आग्रह के बावजूद  इस पर कोई कार्यवाही नहीं हो रही है इसलिए इसे प्रशासन द्वारा न्याय को विफल करने का प्रयास कहना पड़ रहा  है .
            शालिनी कौशिक
                  [कानूनी ज्ञान ]


[ अभी अभी बार एसोसिएशन कैराना के अध्यक्ष श्री कौशल प्रसाद जी से २.४५ पी.एम्.पर प्राप्त सूचना के अनुसार बार एसोसिएशन  कैराना को २५.०००/-रूपए की ये राशि प्राप्त हो गयी है .चलिए देर से ही सही पर प्रशासन को सुध तो आई है. बधाई हो बार एसोसिएशन कैराना .
                                   शालिनी कौशिक एडवोकेट  

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टिप्पणियाँ

  1. आपकी इस उत्कृष्ट पोस्ट कि चर्चा बुधवार (28-11-12) के चर्चा मंच पर भी है | जरूर पधारें |
    सूचनार्थ |

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  2. Shaliniji , hamare qanoon jo angrezon ke zamanese bane hain...sainkdo saal purane,unme badlaaw kee zaroorat hai. Judge ne shiksha suna dee...9 saal kee jo na ke barabar thee...uske bawjood jo loop holes wakeel dhoondh lete hain,unke balboote pe ye teeno apradhee chand maah me chhoot gaye aur khule aam ghoom rahe hain.
    Maine kayee baar Indian Evidence Act ke bareme likha hai. 26/11 ke anubhav ke baawjood is qanoon me badlaw nahee aya.
    Ye mere blog pe kee gayee aapkee tippanee ka adha adhura uttar hai.

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  3. शालिनी जी,
    आज जहां अधिकांश वकील समुदाय न्यायालय और मुवक्किल की तत्परता को विफल कर ज्यादा से ज्यादा टाइम पास करने को ही अपनी सफलता मान बैठे हैं। ऐसे में आप जैसा ईमानदार और साहसिक कदम उठा कर ऐसा ब्लॉग संचालित करना बहुत सराहनीय कार्य है। अपने व्यवसाय में व्यस्त किसी अधिवक्ता का अपने बिजी शिड्यूल मेंं से वक्त निकाल कर आम आदमी के लिए इतना कुछ कैसे होता होगा! बस, इसी की कल्पना में डूबी हूं...
    आपकी चित्रकला में रुचि आपके व्यक्तित्व का सबसे रुचिकर पक्ष है।
    एक नई प्रशंसक
    मूमल

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  4. आप क़ानूनी जानकारी देती रहतीं हैं... इसके लिए आपका बहुत बहुत आभार...!
    ~सादर !!!

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  5. जाओ कचहरी जाओ ,बैल बेच के बिल्ली पाओ .

    मुकदमा जीतने के बाद उस पर अम्ल करवाने के लिए एक और मुकदमा करना पड़ता है इतनी जड़ हो चुकी

    है यह कथित न्याय व्यवस्था .

    न्यायालय का न्याय :प्रशासन की विफलता
    - शालिनी कौशिक
    @ कानूनी ज्ञान

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  6. फिर भी वादी पर कपटपूर्ण ,वाद और न्यायालय का समय बर्बाद करने के कारण २५,०००/-रूपए का जुर्माना लगाया गया .जो कि वह तीन महीने में बार एसोसिएशन कैराना जिला मुज़फ्फरनगर अब शामली को अदा करेगा और यदि वह ऐसा करने में असफल रहता है तो कलेक्टर भू राजस्व की बकाया की तरह इसकी वसूली करेगा .बार एसोसिएशन कैराना इसका उपयोग किताबें खरीदने में करेगा .

    क्या बात है सही फैसला ....!!

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  7. बढ़िया जानकारी हमारें ब्लॉग पर भी जरूर पधारें, नवीन लोक प्रशासन के लक्ष्य

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